सीएससी के नवीनतम विश्लेषण के अनुसार, शीतकालीन प्रदूषण का स्तर और रुझान एक राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता संकट की ओर इंगित करते हैं।

  • विश्लेषण में सभी - उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम, मध्य, और उत्तर पूर्व का विस्तृत मूल्यांकन शामिल है।
  • प्रदूषण चार्ट में बिहार और दिल्ली-एनसीआर शीर्ष पर हैं। पूरी सर्दियों के दौरान पूर्वी क्षेत्र, जिसमें बिहार के नए निगरानी वाले शहर प्रमुख हैं, में पूरे उत्तर भारत के औसत से अधिक सूक्ष्म प्रदूषक काणों की मौजूदगी दर्ज की गई है। उत्तर भारत के अधिकांश शहरों की तुलना में बिहार के छोटे शहरों में प्रदूषण का स्तर ज्यादा पाया गया है।
  • पूरे एनसीआर के शहरों में गाजियाबाद सबसे ज्यादा प्रदूषित पाया गया। आइजोल और शिलांग को देश का सबसे कम प्रदूषित शहर पाया गया। उत्तर पूर्वी क्षेत्र के शहरों में सूक्ष्म प्रदूषण कणों का स्तर अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा न्यूनतम रहा, लेकिन यहां के प्रमुख शहरों में सर्दियों के दौरान इसमें तेज उछाल देखा गया।
  • इस राष्ट्रीय संकट से निपटने के लिए क्षेत्रीय स्तर पर तत्काल और समय बद्ध बहु-क्षेत्रीय कार्यवाही की आवश्यकता है ताकि स्वच्छ वायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए वाहनों, उद्योगों, विद्युत संयंत्रों से निकलने वाले अपशिष्ट, घरेलू इंधन और अन्य स्थानीय स्रोतों से होने वाले उत्सर्जन को नियंत्रित किया जा सके।

नई दिल्ली, 16 मार्च, 2022: सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएई) द्वारा किए गए एक अखिल भारतीय शीतकालीन वायु गुणवत्ता विश्लेषण में कहा गया है कि 2021-22 (15 अक्टूबर से 15 फरवरी ) की सर्दियों के दौरान सभी क्षेत्रों में वायु प्रदूषक कणों का अस्तर अलग-अलग तीव्रता के साथ बढ़ा ही है। हालांकि अधिकांश क्षेत्रों में पीएम 2.5 के स्तर का समग्र क्षेत्रीय औसत पिछली सर्दियों की तुलना में कम था लेकिन कई क्षेत्रों में सर्दियों में होने वाले धूंध के चरणों में गंभीर वृद्धि दर्ज की गई। खासकर उत्तरी और पूर्वी मैदानी इलाकों में क्षेत्रों के

बीच बड़ी दूरी होने के बावजूद प्रदूषण का चरम खतरनाक रूप से उच्च और सघन था।

यह विश्लेषण सीएससी की अर्बन डाटा एनालिटिक्स लैब के 2021-22 विंटर एयर क्वालिटी ट्रैकर इनिशिएटिव के लिए किया गया है। अनुमिता रॉयचौधरी, एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर रिसर्च एंड एडवोकेसी, सीएसई, का कहना है कि “स्पष्ट रूप से शीतकालीन प्रदूषण की चुनौती सिर्फ बड़े शहरों या एक विशिष्ट क्षेत्र तक सीमित नहीं है। यह एक व्यापक राष्ट्रीय समस्या है जिसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर तत्काल और सुचिंतित कार्रवाई की आवश्यकता है। इसके लिए वाहन, उद्योग, बिजली संयंत्र और अपशिष्ट प्रबंधन, जैसे प्रदूषण के प्रमुख क्षेत्रों में वार्षिक वायु प्रदूषण वक्र और दैनिक प्रदूषण तीव्रता को मोड़ने के लिए त्वरित सुधार और कार्रवाई की आवश्यकता है।

अर्बन डाटा एनालिटिक्स लैब, सीएसई, के प्रोग्राम मैनेजर अविकल सोमवंशी का कहना है कि“ क्योंकि वायु गुणवत्ता निगरानी प्रणालियों के विस्तार के साथ कई क्षेत्रों में वास्तविक समय वायु गुणवत्ता आंकड़ो की उपलब्धता में सुधार हुआ है इसलिए क्षेत्रीय भिन्नता और विशिष्ट क्षेत्रीय प्रवृत्तियों का आकलन करना संभव हो गया है। यह क्षेत्रीय स्वच्छ वायु कार्रवाई को सूचित करने में मदद करता है।

इस वायु गुणवत्ता ट्रैकर पहल ने शीतकालीन वायु गुणवत्ता की क्षेत्रीय और अंतर क्षेत्रीय विभिन्नताओं की पियर पियर तुलना को मानक बनाने में मदद की है।

यह विश्लेषण केंद्रीय नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आधिकारिक ऑनलाइन पोर्टल सेंट्रल कंट्रोल रूम फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट से सार्वजनिक रूप से उपलब्ध छोटे-छोटे रियल टाइम डाटा (15 मिनट का औसत) पर आधारित है। यह डाटा 26 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 161 शहरों में फैले कंटीन्यूअस एंबिएंट एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग सिस्टम (सीएएक्यूएमएस) के तहत 326 आधिकारिक स्टेशनों से लिए गए हैं।

मुख्य बिंदु

सर्दियों में प्रदूषण के क्षेत्रीय प्रोफाइल से पता चलता है कि पूर्वी क्षेत्र भी दिल्ली-एनसीआर जितना ही प्रदूषित है: पूर्वी मैदानी इलाकों जिसमें बिहार के नए निगरानी वाले 19 शहर और कस्बे शामिल हैं, में पीएम 2.5 का स्तर दिल्ली एनसीआर के समान ही था। सर्वाधिक 10 प्रदूषित शहरों में बिहार के 6 शहर शामिल है जिसमें सिवान और मुंगेर शीर्ष पर हैं। उत्तरी मैदानी इलाकों में गाजियाबाद दिल्ली फरीदाबाद और मानेसर सूची में तीसरे, पांचवें, सातवें और दसवें स्थान पर हैं। भले ही बिहार के छोटे शहरों का मौसमी औषत एनसीआर के बड़े शहरों को टक्कर देता हो लेकिन धूंध के चरणों के दौरान उनका चरम प्रदूषण तुलनात्मक रूप से कम रहा है।

एनसीआर के शहरों में सबसे गंभीर दैनिक (24 घंटे का औसत) पीएम 2.5 का स्तर अनुभव किया गया है, जिसमें गाजियाबाद सबसे ज्यादा प्रभावित रहा है। दिल्ली नोएडा फरीदाबाद ग्रेटर नोएडा और गुरुग्राम में भी इस सर्दी में चरम प्रदूषण स्तर (24 घंटे का औसत) गंभीर रहा है।

पूर्वी क्षेत्र में पीएम 2.5 का औसत स्तर दक्षिणी भारत के शहरों के औसत स्तर से 3 गुणा अधिक है और उत्तर भारतीय शहरों की तुलना में 22% अधिक प्रदूषित है। पूर्वी क्षेत्र में बिहार का उप-क्षेत्र सर्वाधिक प्रदूषित है।

24 घंटे में पीएम 2.5 के उच्चतम स्तर के दृष्टिकोण से उत्तर भारतीय शहरों में औसत दैनिक प्रदूषण का स्तर उच्चतम दर्ज किया गया । उत्तरी भारत में दिल्ली-एनसीआर सर्वाधिक प्रदूषित क्षेत्र बना हुआ है जहां प्रदूषण का दैनिक औसत पूरे उत्तर भारत के दैनिक औसत से 5 गुणा अधिक है। इनका चरम प्रदूषण स्तर भी पूर्वोत्तर भारत के शहरों सबसे कम चरम प्रदूषण स्तर वाला क्षेत्र के औसत शिखर से लगभग 5 गुना अधिक और पूर्वी शहरों के औसत शिखर से लगभग 60% अधिक है।

सोमवंशी कहते हैं “यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण होगा कि किसी भी क्षेत्र के बड़े शहर सर्वाधिक प्रदूषित नहीं है - यह तो छोटे और आने वाले शहर हैं जो प्रदूषण के हॉट-स्पॉट बन रहे हैं। यह सर्दियों के चरम दैनिक प्रदूषण स्तर के आंकड़ों से और भी अस्पष्ट है”।.

2021-22 का औसत शीतकालीन प्रदूषण पिछली सर्दियों की तुलना में कम रहा है: इस सर्दी में क्षेत्रीय पीएम 2.5 का अस्तर सभी क्षेत्रों में पिछली सर्दियों की तुलना में कुछ मिन्नता के साथ कम ही रहा है। पिछली सर्दियों की तुलना में इस

सर्दी में हवा की गुणवत्ता 12% अधिक थी यह 136 शहरों के दोनों सर्दियों (15 अक्टूबर से 28 फरवरी) 75 प्रतिशत दिनों में दैनिक पीएम 2.5 की सांद्रता के वैध आंकड़ों के औसत पर आधारित है। औसतन सबसे अधिक सुधार पूर्वोत्तर क्षेत्र (33प्रतिशत) में देखा गया है जबकि पश्चिमी क्षेत्र के शहरों में सबसे कम (8प्रतिशत) दर्ज किया गया है।

उत्तर भारतीय शहरों में इस सर्दी में पीएम 2.5 के स्तर में औसतन 11% की कमी दर्ज की गई, लेकिन दिल्ली एनसीआर के क्षेत्रों में यह सुधार कम दर्ज किया गया लगभग (8 प्रतिशत) और दिल्ली एनसीआर में चौबीस घंटों के औसत चरम प्रदूषण स्तर में मामूली वृद्धि दर्ज की गई। सर्दियों में प्रदूषण स्तर के औसत स्तर में समग्र गिरावट के बावजूद दक्षिण के शहरों में (24 प्रतिशत) और मध्य भारत के शहरों में (7 प्रतिशत) चरम प्रदूषण के औसत स्तर में आधार लाइन से उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई।

बिहार के छोटे शहरों में सर्दियों के दौरान दिल्ली एनसीआर के बड़े शहरों की तुलना में प्रदूषण का स्तर अधिक दर्ज किया गया। बिहार का सिवान इस सर्दी में भारत का सर्वाधिक प्रदूषित शहर था जिसका मौसमी औसत 187 μg/m³ मीटर था। वास्तव में सर्दियों में प्रदूषण के उच्च स्तर वाले शहरों में बिहार के 13 शहर शामिल हैं। इस सूची में दिल्ली एनसीआर के 11 शहर थे। बिहार और एनसीआर के क्षेत्रों के बाहर शीर्ष 25 शहरों में एकमात्र शहर उत्तरी हरियाणा का हिसार शहर था।

सर्दियों में प्रदूषण के चरम स्तर के नजरिए से देश के बाकी हिस्सों की तुलना में एनसीआर के शहर सबसे ज्यादा प्रदूषित (24 घंटे के औसत) शहरों की सूची में शीर्ष पर रहे। इस सर्दी में गाजियाबाद में सबसे खराब प्रदूषण स्तर (24 घंटे का औसत) देखा गया जिसका स्तर 607 μg/m³ (भारतीय मानक का लगभग एक 11 गुणा) था।

मिजोरम में आइजोल और मेघालय में शिलांग देश के सबसे कम प्रदूषित शहर थे ।

उत्तरी क्षेत्र में शीतकालीन वायु गुणवत्ता

उत्तरी क्षेत्र में पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली-एनसीआर, राजस्थान और यूपी जैसे राज्यों में फैले वास्तविक समय निगरानी (रियल टाइम मॉनिटरिंग) सुविधा वाले 60 शहर शामिल हैं। इनमें से 56 शहर 2020 की सर्दियों में भी सक्रिय थे। भौगोलिक रूप से यह क्षेत्र उत्तर मध्य मैदानों का प्रतिनिधित्व करता है।

वृद्धि की रुझानों वाले शहर: इस क्षेत्र के 12 शहरों में वृद्धि की प्रवृत्ति दिखाई देती है। यानी सर्दियों के औसत और पीक दोनों में यहां पिछली सर्दियों की तुलना में वृद्धि दर्ज की गई। हरियाणा के भिवानी में सर्दियों के औसत में 145 फ़ीसदी और पीक में 89 फ़ीसदी का जबरदस्त उछाल देखा गया। इसके बाद यूपी के हापुड़ में सर्दियों के औसत में 129 प्रतिशत और पिक में 117 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। वृद्धि दिखाने वाले अन्य शहरों में बल्लभगढ़, कोटा, जयपुर, खानवा, उदयपुर, पटियाला, मुजफ्फरनगर, जालंधर, चरखी दादरी और फरीदाबाद शामिल है।

मिश्रित प्रवृत्ति वाले शहर: इस क्षेत्र के 18 शहरों में मिश्रित प्रवृत्ति दिखाई देती है, यानी उनके सर्दियों के औसत में तो गिरावट आई है परंतु चरम प्रदूषण स्तर में पिछली सर्दियों की तुलना में वृद्धि दर्ज हुई है या फिर इसके विपरीत परिणाम प्राप्त हुआ है। मानेसर, अंबाला, लुधियाना, कैथल, ने सर्दियों के औसत में वृद्धि दर्ज की लेकिन इनके चरम प्रदूषण स्तर में गिरावट देखी गई। अजमेर, जोधपुर, मंडी, गोविंदगढ़, पलवल, गुरुग्राम, पंचकूला, नारनौल, मेरठ, गाजियाबाद, कानपुर, नोएडा, आगरा, भटिंडा और ग्रेटर नोएडा में सर्दियों के औसत में गिरावट देखी गई जबकि पिछली सर्दियों की तुलना में चरम प्रदूषण में वृद्धि दर्ज की गई। ग्रेटर नोएडा में सबसे अलग प्रवृत्ति दर्ज की गई क्योंकि इसके सर्दियों के औसत में 31 प्रतिशत की गिरावट देखी गई परंतु चरम प्रदूषण स्तर में 23 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।

गिरावट की प्रवृत्ति दर्ज करने वाले शहर: 26 शहरों में गिरावट की प्रवृत्ति दिखाई देती है यानी सर्दियों के औसत और पीक दोनों में पिछली सर्दियों की तुलना में गिरावट दर्ज कर की गई। जम्मू और कश्मीर के श्रीनगर में सर्दियों के औसत में 63 प्रतिशत और निचले शिखर में 33 प्रतिशत की गिरावट के साथ सर्वाधिक गिरावट दर्ज की गई। गिरावट दिल्ली में भी दर्ज की गई लेकिन मामूली। इसके

शीतकालीन औसत में 8 प्रतिशत की गिरावट आई है और चरम प्रदूषण स्तर में 2 प्रतिशत की गिरावट आई है। गिरावट की प्रवृत्ति वाले अन्य शहरों में पाली, रूपनगर, अलवर, पानीपत, हिसार, जिंद, करनाल, अमृतसर, बहादुरगढ़, बागपत, कुरुक्षेत्र, यमुनानगर, सिरसा, रोहतक, सोनीपत, भिवाड़ी, चंडीगढ़, धारूहेड़ा, बुलंदशहर, मंडीखेड़ा, मुरादाबाद, फतेहाबाद, लखनऊ और वाराणसी शामिल हैं।

सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर सर्दियों के दौरान क्षेत्र का सबसे प्रदूषित शहर गाजियाबाद था जहां सर्दियों का औसत 170 μg/m³ था। अगले 8 स्थानों पर मानेसर, बागपत, नोएडा, गुरुग्राम, मेरठ और हापुर जैसे पड़ोसी एनसीआर शहरों का कब्जा है एनसीआर के बाहर उत्तर में हिसार सबसे प्रदूषित शहर है जहां सर्दियों का औसत 142 μg/m³ है। इसके बाद फिरोजाबाद, मुरादाबाद और वृंदावन जैसे एनसीआर के करीबी क्षेत्र हैं।

सबसे कम प्रदूषित शहर: श्रीनगर उत्तर का सबसे स्वच्छ शहर है। हरियाणा में पलवल, पंजाब में भटिंडा और राजस्थान में अलवर अपेक्षाकृत सर्दियों में कम औसत वाले अन्य शहर हैं दिलचस्प बात यह है कि सभी शहरों में चरम प्रदूषण 60 μg/m³ मानक से अधिक था।

पूर्वी क्षेत्र में शीतकालीन वायु गुणवत्ता

पूर्वी क्षेत्र में, पश्चिम बंगाल, झारखंड और उड़ीसा में फैले 28 शहर शामिल हैं। भौगोलिक रूप से यह क्षेत्र पूर्वी मैदानों और पूर्वी हाइलैंड्स का प्रतिनिधित्व करता है।

वृद्धि की प्रवृत्ति वाले: इस क्षेत्र के 2 शहरों में वृद्धि की प्रवृत्ति दिखाई देती है यानी सर्दियों के औसत और पीक दोनों में पिछली सर्दियों की तुलना में वृद्धि हुई है। बिहार के हाजीपुर में सर्दियों के औसत में 51 प्रतिशत और पीक में 54 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। उड़ीसा के तालचेर में सर्दियों के औसत में 1 प्रतिशत और पीक में 16 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है।

मिश्रित प्रवृत्ति वाले शहर: मुजफ्फरपुर क्षेत्र का एकमात्र शहर है जहां मिश्रित प्रवृत्ति देखी गई है यानि यहां सर्दियों के औसत में गिरावट आई है लेकिन पिछली सर्दियों की तुलना में वृद्धि हुई है। इसके उलट भी देखा जा सकता है इसके

शीतकालीन औसत में 3 प्रतिशत वृद्धि हुई है परंतु चरण प्रदूषण में 4 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई ।

की प्रवृत्ति वाले शहर इस क्षेत्र के नौ शहरों में गिरावट की प्रवृत्ति देखी गई है यानी पिछले सर्दियों की तुलना में सर्दियों के औसत और पिक दोनों में गिरावट देखी गई है। उड़ीसा के ब्रजराजनगर में शीतकालीन औसत में 57% गिरावट और निचले शिखर में 61% की गिरावट के रूप में सबसे बड़ी गिरावट दर्ज हुई है। कोलकाता में भी सर्दियों की औसत में 21 प्रतिशत और चरम प्रदूषण में 27 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। गिरावट की प्रवृत्ति वाले अन्य शहर पटना, हावड़ा, गया, आसनसोल, दुर्गापुर, हल्दिया और सिलीगुड़ी हैं।

सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर: इस क्षेत्र का सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर बिहार का सिवान है जहां सर्दियों का औसत 187 μg/m³ था। वास्तव में सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों की सूची में बिहार के छोटे शहर ही हावी है और शीर्ष 17 स्थानों पर काबिज हैं। 103 μg/m³ के सर्दियों के औसत के साथ दुर्गापुर पश्चिम बंगाल का सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर है। पटना और कोलकाता चाट में अठारहवें और तेइसवें नंबर पर हैं।

सबसे कम प्रदूषित शहर: इस क्षेत्र में उड़ीसा का ब्रजराजनगर और पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में सबसे कम सर्दियों का औसत दर्ज किया गया। ब्रजराजनगर क्षेत्र का एकमात्र शहर है जहां प्रदूषण का चरम स्तर 24 घंटे के औसत के मानक के नीचे है।

पश्चिमी क्षेत्र में शीतकालीन वायु गुणवत्ता

इस क्षेत्र में गुजरात और महाराष्ट्र में फैले 17 शहर शामिल हैं। सभी शहरों में सर्दियों के मौसम के दोनों आंकड़े उपलब्ध हैं भौगोलिक रूप से यह क्षेत्र शुष्क पश्चिमी, उत्तरी दक्कन पठार और कोंकण तट का प्रतिनिधित्व करता है।

वृद्धि की प्रवृत्ति वाले शहर: इस क्षेत्र के तीन शहरों में वृद्धि की प्रवृत्ति दिखाई देती है, अर्थात इन तीनों शहरों में सर्दियों के औसत और पीक दोनों में पिछली सर्दियों की तुलना में वृद्धि हुई है गुजरात के अंकलेश्वर में सर्दियों के औसत में 20 फ़ीसदी और पीक में 52 फ़ीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। महाराष्ट्र के

नागपुर में सर्दियों के औसत में 9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है और पिक में 78 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। महाराष्ट्र के नासिक में सर्दियों के औसत में 7 प्रतिशत और पीक में 10 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।

मिश्रित प्रवृत्ति वाले शहर : इस क्षेत्र के 4 शहरों में मिश्रित प्रवृत्ति दिखाई देती है अर्थात उनके सर्दियों के औसत में गिरावट आई है और पीक में वृद्धि हुई है या फिर इसके विपरीत हुआ है। चंद्रपुर में सर्दियों के औसत में 32 प्रतिशत वृद्धि और पीक में 24 प्रतिशत कमी के साथ सबसे अलग प्रवृत्ति दर्ज की गई है।

गिरावट की प्रवृत्ति वाले शहर: इस क्षेत्र के 8 शहरों में गिरावट की प्रवृत्ति दिखाई देती है अर्थात पिछली सर्दियों की तुलना में सर्दियों के औसत और पीक दोनों में कमी दर्ज की गई है। औरंगाबाद में शीतकालीन औसत में 59 प्रतिशत की गिरावट और निचले शिखर में 57 प्रतिशत की गिरावट के साथ सबसे ज्यादा गिरावट दर्ज की गई है। मुंबई में भी शीतकालीन औसत में 14 प्रतिशत और पीक में 22 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। गिरावट की प्रवृत्ति दिखाने वाले अन्य शहरों में पुणे, कल्याण, अहमदाबाद, नवी मुंबई, सोलापुर और नंदेसरी शामिल है।

सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर : इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर अंकलेश्वर रहा जहां मौसमी औसत 101 μg/m³ था। इस सूची में अगले 2 स्थानों पर वापी और कल्याण हैं।

सबसे कम प्रदूषित शहर: औरंगाबाद और नंदेसरी में इस क्षेत्र में सबसे कम शीतकालीन औसत दर्ज किया गया है। चंद्रपुर और सोलापुर तीन सबसे कम प्रदूषित शहरों की सूची में शामिल ।

मध्य क्षेत्र में शीतकालीन वायु गुणवत्ता

इस क्षेत्र में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में फैले 17 शहर शामिल हैं। इनमें से 15 शहरों में दोनों सर्दियों के आंकड़े उपलब्ध हैं। भौगोलिक रूप से यह क्षेत्र सेंट्रल हाइलैंड्स का प्रतिनिधित्व करता है

वृद्धि की प्रवृत्ति वाले शहर: क्षेत्र के 3 शहरों में वृद्धि की प्रवृत्ति दिखाई देती है अर्थात शीतकालीन औसत और पीक दोनों में पिछली सर्दियों की तुलना में वृद्धि दर्ज की गई है। भोपाल में शीतकालीन औसत में 11 प्रतिशत और पिक में 138

प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। इंदौर में शीतकालीन औसत में 3 प्रतिशत और पीक में 20 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। सतना में शीतकालीन औसत में कोई बदलाव नहीं देखा गया लेकिन पीक में 6 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

मिश्रित प्रवृत्ति वाले : इस क्षेत्र के 4 शहरों में मिश्रित प्रवृत्ति दिखाई देती है अर्थात पिछली सर्दियों की तुलना में शीतकालीन औसत में गिरावट दर्ज की गई है और पीक में वृद्धि दर्ज की गई है या फिर इसके उलट हुआ है। सागर में सबसे अलग प्रवृत्ति रही जिसमें शीतकालीन औसत में 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई लेकिन पीक में 50 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई। इस क्षेत्र में मिश्रित प्रवृत्ति वाले अन्य शहर मेहर दामोह और मंडीदीप है।

गिरावट के प्रवृत्ति वाले शहर: इस क्षेत्र के 8 शहरों में गिरावट की प्रवृत्ति दर्ज की गई है पिछले सर्दियों की तुलना में शीतकालीन औसत और पिक दोनों में गिरावट दर्ज की गई है। ग्वालियर में शीतकालीन औसत में 39 प्रतिशत और निचले पीक में 4 प्रतिशत की गिरावट के साथ सबसे ज्यादा गिरावट दर्ज की गई है। गिरावट की प्रवृत्ति वाले अन्य शहरों में पीथमपुर, देवास, सिंगरौली, जबरौली, कटनी, रतलाम और उज्जैन शामिल है।

सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर: इस क्षेत्र का सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर सिंगरौली था। जहां शीतकालीन औसत 115 μg/m³ था ।अगले दो स्थानों पर कटनी और जबलपुर है। भोपाल में 24 घंटे के औसत का उच्चतम स्तर 407 μg/m³ था ।

सबसे कम प्रदूषित शहर: सतना और भिलाई में इस क्षेत्र में सबसे कम शीतकालीन औसत दर्ज किया गया लेकिन इन दोनों शहरों के आंकड़े संदिग्ध प्रवृत्ति के हैं। यहां के निगरानी केंद्र राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधीन संचालित होने की अपेक्षा उद्योगों के स्वामित्व के अधीन संचालित हैं।

दक्षिणी क्षेत्र में शीतकालीन वायु गुणवत्ता

दक्षिणी क्षेत्र में इन सर्दियों में पीएम 2.5 का क्षेत्रीय औसत स्तर सबसे कम दर्ज किया गया है लेकिन पिछली सर्दियों की तुलना में प्रदूषण में लगभग 24 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। दक्षिण के औद्योगिक शहर तमिल नाडु में गुम्मीडिपुंडी

और कर्नाटक में घडग भी पीक प्रदूषण स्तर (24 घंटे के औसत) के हिसाब से 10 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में शामिल दिखाई देते हैं।

इस क्षेत्र में आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, पुडुचेरी, तमिल नाडु और तेलंगाना के 35 शहर शामिल हैं। भौगोलिक रूप से यह क्षेत्र दक्षिणी दक्कन का पठार, पश्चिमी घाट और मालाबार तथा कोरोमंडल तटों का प्रतिनिधित्व करता है।

वृद्धि की प्रवृत्ति वाले शहर: इस क्षेत्र के 6 शहरों में वृद्धि की प्रवृत्ति दिखाई देती है अर्थात पिछली सर्दियों की तुलना में शीतकालीन औसत और पीक दोनों में वृद्धि दर्ज की गई है। दावणगोड़े में शीतकालीन औसत में 142 प्रतिशत और पीठ में 133 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। कोयंबटूर और कोच्चि बढ़ते रुझान वाले प्रमुख शहर हैं। इस क्षेत्र में वृद्धि की प्रवृत्ति वाले अन्य शहर गडग यादगीर और हुबली हैं।

मिश्रित प्रवृत्ति वाले शहर: इस क्षेत्र के 7 शहरों में मिश्रित प्रवृत्ति दिखाई देती है यानी इन के शीतकालीन सत्र में गिरावट और पिक में वृद्धि दर्ज की गई है या फिर इसके उलट हुआ है तमिलनाडु के गुम्मीडिपुंडी में शीतकालीन औसत में सबसे अलग प्रवृत्ति थी जिसमें सर्दियों के औसत में 44 प्रतिशत की कमी आई थी लेकिन इसकापीक अपने निचले आधार से 362 प्रतिशत अधिक था। चेन्नई में भी सर्दियों की औसत में 18% की कमी के साथ मिश्रित रुझान दर्ज किया गया लेकिन इसका पीक 24 फ़ीसदी अधिक था। इस क्षेत्र में मिश्रित प्रवृत्ति वाले अन्य शहर रामनगर, मदिकेरी, पुडुचेरी, रायचूर और मंगलौर हैं

गिरावट की प्रवृत्ति वाले शहर: इस क्षेत्र के 20 शहरों में गिरावट की प्रवृत्ति दिखाई दे रही है। सर्दियों का औसत और पिक दोनों में इनकी पिछली सर्दियों की तुलना में कमी आई है। कर्नाटक के चामराजनगर में उनके शीतकालीन सत में 45% की गिरावट और निचले शिखर में 52 प्रतिशत की गिरावट के साथ सबसे अधिक गिरावट गिरावट देखी गई है। बेंगलुरु और हैदराबाद अपने शीतकालीन औसत और पीक औसतों में मामूली गिरावट दिखाते हैं। गिरावट की प्रवृत्ति वाले अन्य शहरों में तिरुपति, चिक्काबल्लापुर, मैसूर, बागलकोट, कन्नूर, कोझिकोड, कालाबुरगी, राजामहेंद्रवाराम, अमरावती, त्रिशूल, तिरुवनंतपुरम, विशाखापट्टनम, विजयपुरा, कोप्पल, चिक्कमंलुरु, कोल्लम और शिवमोगा शामिल हैं। · सबसे प्रदूषित शहर:

इस क्षेत्र के सबसे प्रदूषित शहर कलबुर्गी और हैदराबाद थे। दोनों का सर्दियों का औसत 58 μg/m³ था। इसके बाद विशाखापत्तनम का स्थान है। · सबसे कम प्रदूषित शहर: कर्नाटक के चामराजनगर और चिक्कमगलुरु में इस क्षेत्र में सबसे कम सर्दियों का औसत दर्ज किया गया। प्रदूषित शहरों की संख्या केरल के बाद कर्नाटक में सबसे कम ।

पूर्वोत्तर क्षेत्र में शीतकालीन वायु गुणवत्ता

इस क्षेत्र में छह शहर शामिल हैं। भौगोलिक रूप से, यह क्षेत्र पूर्वी हिमालय और ब्रह्मपुत्र के मैदानों का प्रतिनिधित्व करता है।

गिरावट की प्रवृत्ति वाले शहर: इस क्षेत्र के सभी शहरों में गिरावट की प्रवृत्ति दिखाई देती है, यानी सर्दियों के औसत और पीक दोनों में उनकी पिछली सर्दियों की तुलना में कमी आई है। मिजोरम के आइजोल में उनके संबंधित शीतकालीन औसत में 50 प्रतिशत की गिरावट और पिक में 51प्रतिशत की गिरावट के साथ सबसे ज्यादा गिरावट दर्ज की गई है। अगरतला (त्रिपुरा) में शीतकालीन औसत में 7 प्रतिशत की गिरावट और पीक के स्तर में 16 प्रतिशत की गिरावट के साथ सबसे कम बदलाव दर्ज किया गया।

सबसे प्रदूषित शहर: इस क्षेत्र के सबसे प्रदूषित शहर में गुवाहाटी शामिल है, जिसका सर्दियों का औसत 81 μg/m³ है। इसके बाद अगरतला का स्थान आता है जहां सर्दियों का औसत 77 μg/m³ दर्ज किया गया। सबसे कम प्रदूषित शहर: आइजोल और शिलांग में इस क्षेत्र में सबसे कम शीतकालीन औसत दर्ज किया गया। नदी-घाटियों और तलहटी के शहरों की तुलना में हिल स्टेशन अपेक्षाकृत कम प्रदूषित हैं। इस सर्दी में सभी क्षेत्रों के अन्य सभी शहरों की तुलना में आइजोल और शिलांग का प्रदूषण स्तर सबसे कम था। लेकिन कम मौसमी औसत वाले शहरों और कस्बों को भी दैनिक स्तरों में उच्च स्पाइक्स का सामना करना पड़ा है।

इस विश्लेषण से हमारे क्या निष्कर्ष हैं?

रॉयचौधरी कहती हैं: “सम्पूर्ण क्षेत्र में प्रदूषण के स्तर में व्याप्त व्यापक भिन्नता पर स्थानीय भू-जलवायु परिस्थितियों, मौसम विज्ञान और प्रदूषण की तीव्रता की भिन्न प्रवृति का व्यापक प्रभाव पड़ता है। लेकिन जो रुझान सामने आ रहे हैं वो गंभीर राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता संकट की ओर इशारा करते हैं। जहां विभिन्न . राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों को पूरा करने के लिए जूझ रहे हैं, वहीं सर्दियों की स्थिति समस्या को और बढ़ा रही है। भले ही महामारी की स्थिति ने अधिकांश क्षेत्रों में प्रवृत्ति को रोक दिया है, फिर भी एक मिश्रित प्रवृत्ति तो है ही। अपेक्षाकृत कम वार्षिक औसत प्रदूषण स्तर होने के बावजूद सर्दियों के दौरान चरम प्रदूषण बढ़ सकता है। यह ठंडी और शांत सर्दियों की स्थिति और क्षेत्रीय प्रभाव के प्रभाव को भी इंगित करता है।”

सोमवंशी कहते हैं: “जहां शहरों को स्थानीय प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए अपनी संबंधित स्वच्छ वायु कार्य योजनाओं की आवश्यकता होती है, वहीं शहरी और ग्रामीण परिदृश्य में व्यापक रूप से फैले हुए स्रोतों से प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए इस क्षेत्र के प्रयास को बढ़ाया जाना चाहिए। बहु-क्षेत्रीय योजना में वाहनों, उद्योग, बिजली संयंत्रों, घरेलू प्रदूषण, अपशिष्ट जलने और बहुत कुछ को संबोधित करना है। क्षेत्रीय और स्थानीय प्रदूषण की इस बारीक ट्रैकिंग के लिए स्वच्छ वायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए नीति निर्माण और वायु गुणवत्ता प्रबंधन के अनुपालन ढांचे को सूचित करने की आवश्यकता है।”

अधिक जानकारी, साक्षात्कार आदि के लिए सम्पर्क करें

सुकन्या नायर | sukanya.nair@cseindia.org | 8816818864

Tags: