राजस्थान के शहरों में खराब हवा वाले दिनों में चिंताजनक बढोत्तरी पर सीएसई का ताजा विश्लेषण

  • राजस्थान में समय से पहले होने वाली मौतों के लिए वायु प्रदूषण दूसरा सबसे बड़ा कारण है। वायु प्रदूषण के कारण सूबे में स्वास्थ्य की यह लागत राज्य के 70 फीसदी जीडीपी के बराबर है , जो कि देश के 1.36 फीसदी के मुकाबले काफी अधिक है। यदि वायु प्रदूषण की सांद्रता कम हो तो राजस्थान में जीवन प्रत्याशा 2.5 वर्ष तक बढ़ सकती है। 
  • वायु प्रदूषण गुणवत्ता का रीयल टाइम डाटा यह बताता है कि जयपुर में 2020 की सर्दियों के दौरान पीएम 2.5 प्रदूषण वाले खराब श्रेणी के वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) वाले दिनों की संख्या में दोगुनी बढत हुई है।   
  • बीते तीन वर्षों में जयपुर और भिवाड़ी में खराब हवा वाले दिनों की आवृत्ति और अवधि में भी बढ़त हुई है। 
  • गर्मियों से सर्दियों के दिनों में वायु गुणवत्ता का बदलाव होता है वहीं, हवा के भीतर पार्टिकुलेट प्रदूषण में पीएम 2.5 की हिस्सेदारी 50 से 70 फीसदी तक बढ़ी हुई पाई गई।  
  • राजस्थान के ज्यादातर शहरों में ओजोन स्तर की वृद्धि वाले दिनों में बढोत्तरी हो रही है, जो कि एक नई स्वास्थ्य जोखिम की तरफ इशारा कर रही है 
  • लॉकडाउन में जो राहत मिली थी सर्दियों के प्रदूषण ने उसे बराबर कर दिया है 
  • राजस्थान में जयपुर, अलवर, जोधपुर, उदयपुर और कोटा प्रमुख ऐसे शहर हैं जहां पूरी प्राथमिकता और पैमाने के साथ स्वच्छ हवा के लिए त्वरित कार्ययोजना की जरूरत है    

नई दिल्ली, 20 दिसंबर,  2020  

राजस्थान ने मानसून और लॉकडाउन अवधि में स्वच्छ हवा के लिए जो कुछ हासिल किया वह लॉकडाउन के बाद आर्थिक गतिविधियों के शुरू होने और वायु प्रदूषण की मेजबान सर्दी ने मिलकर मटियामेट कर दिया है। हालांकि, यह प्रत्याशित था।  

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवॉयरमेंट ने 20 दिसंबर, 2020 तक के ताजा अध्ययन और विश्लेषण में यह तथ्य उजागर किया है। रिपोर्ट के मुताबिक जयपुर डिवीजन और अन्य शहरों में रीयल टाइम डाटा बटोरने वाले निगरानी स्टेशनों के आंकड़ों का विश्लेषण इस सर्दियों में राजस्थान के वायु प्रदूषण पैटर्न में बदलाव को प्रदर्शित करता है।  

हालांकि, राजस्थान में वायु प्रदूषण का जाल उतना अधिक नहीं है जितना कि गंगा के मैदानी भागों में वायु प्रदूषण कहर बरप रहा है। यहां सर्दियों में बढ़ने की प्रवृत्ति है। यहां तक कि 20 दिसंबर, 2020 तक यदि पीएम 2.5 के कुल औसत स्तर की बात करें तो यह बीते वर्ष (2019) की तुलना में कम है क्योंकि गर्मियों में लॉकडाउन लगने के कारण सभी तरह की गतिविधियां ठप थीं। सर्दियों में पीएम 2.5 का स्तर जयपुर और शेष राजस्थान में अपने मानकों से अधिक बढ़ जाता है लेकिन इस वर्ष इस प्रवृत्ति में बदलाव हुआ है और एक सप्ताह पहले ही सीजन की शुरुआत हो गई। जयपुर डिवीजन में बीते वर्ष (2019) नवंबर महीने के मुकाबले इस वर्ष नवंबर महीने में पीएम 2.5 का स्तर 26 से 33 फीसदी बढ़ गया।   

मौसम में बदलाव और ठप पड़ी हुई आर्थिक गतिविधियों के दोबारा शुरू होने के कारण यह स्थिति बनी है। सीएसई की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉयचौधरी ने बताया कि सर्दियों की यह एक अनुमानित और जटिल प्रवृत्ति है जब सतत तरीके से उत्सर्जन स्थानीय स्रोतों से होता रहा है। इनमें वाहन, उद्योग, निर्माण और बॉयोमास बर्निंग के कारण अंतराल पर होने वाले प्रदूषण शामिल हैं। प्रायः यह प्रदूषण सर्दियों की जाल में फंस जाते हैं। लेकिन इस वर्ष आर्थिक गतिविधियों के दोबारा शुरू होने के बाद से प्रदूषण अपने उच्चतम स्तर पर है और काफी ज्यादा बढ़त देखी जा रही है।  इसे रोकने के लिए वृहत पैमाने और प्राथमिकता वाली कार्ययोजना की त्वरित जरूरत है।  

सीएसई के अर्बन लैब टीम ऑफ सस्टेनबल सिटीज के कार्यक्रम प्रबंधक अविकल सोमवंशी ने कहा कि विस्तृत आंकड़ों का विश्लेषण यह बताता है कि वायु प्रदूषण इस क्षेत्र के दायरे में और इससे बाहर एक व्यापक समस्या है। और इसमें तत्काल सुधार की जरूरत है। खासतौर से वाहन, उद्योग, पावर प्लांट और कचरा प्रबंधन को नियंत्रित करके सर्दियों के इस घातक प्रदूषण पर लगाम संभव है। इससे वार्षिक स्तर पर प्रदूषण के ग्राफ को कर्व भी किया जा सकता है।  

सीएसई का विश्लेषण यहां https://cdn.cseindia.org/userfiles/Rajasthan-note-winter-pollution.pdf  मौजूद है। इस रिपोर्ट का आधार केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की ओर से प्रत्येक 15 मिनट पर एकत्र किए गए वायु प्रदूषण के सार्वजनिक रीयल टाइम आंकड़े हैं। जो कि सीपीसीबी के सतत परिवेशी वायु गुणवत्ता प्रबंधन निगरानी संयंत्र (सीएएक्यूएमएस) द्वारा  जुटाए जाते हैं और  वायु गुणवत्ता प्रबंधन के आधिकारिक ऑनलाइन पोर्टल केंद्रीय नियंत्रण कक्ष पर मौजूद हैं। विश्लेषण के लिए जोधपुर, कोटा, पाली, उदयपुर, अलवर और भिवाड़ी शहर के वायु प्रदूषण आंकड़ों को शामिल किया गया हैं।  

सीएसई विश्लेषण की प्रमुख विशेषताएं 

लॉकडाउन के कारण सालाना स्तर पर औसत पीएम 2.5 प्रदूषण का स्तर कम है लेकिन सर्दियों के प्रदूषण को बढ़ने से नहीं रोका जा सका। आर्थिक गतिविधियों के दोबारा शुरू होने के कारण वायु प्रदूषण को सर्दियों में गति मिली। अक्तूबर में ही पीएम 2.5 का प्रदूषण स्तर बढ़ने लगा था। यदि स्वच्छ हवा वाले सप्ताह की बात करें तो पीएम 2.5 का साप्ताहिक औसत भी जयपुर में 7 गुना, अजमेर में 5 गुना, अलवर में 4 गुना, भिवाड़ी में 9 गुना, कोटा में 8 गुना, जोधपुर में 4 गुना, पाली में 3 गुना और उदयपुर में 4 गुना ज्यादा खराब सप्ताह साबित हुए। 

भिवाड़ी को छोड़कर 15 नवंबर, 2020 को सप्ताहांत में सभी शहरों का खराब सप्ताह था।  

अलवर और पाली को अप्रैल, 2020 के शुरूआत में सबसे स्वच्छ सप्ताह मिला। अजमेर और कोटा को 12 जुलाई, 2020 सप्ताह की समाप्ति पर जबकि उदयपुर, जयपुर और भिवाड़ी में अगस्त 2020 में सबसे स्वच्छ हवा वाले सप्ताह रहे। जोधपुर को सबसे स्वच्छ सप्ताह 6 सितंबर 2020 के पास मिला।  लॉकडाउन के कारण होने वाले बदलाव ज्यादा टिकाऊ नहीं रहे इसलिए टिकाऊ बदलावों की जरूरत है। जैसे वाहन, उद्योग, पावर प्लांट और कचरा प्रबंधन।  

नवंबर में औसत पीएम 2.5 का स्तर इस वर्ष काफी ज्यादा रहा। पीएम 2.5 का औसत स्तर नवंबर महीने में जयपुर में 26 फीसदी, अलवर और भिवाड़ी में 33 फीसदी 2019 नवंबर, के मुकाबले ज्यादा रहा। इसके अलावा पाली और अजमेर में छह-छह फीसदी, उदयपुर में 8 फीसदी, कोटा में 33 फीसदी, जोधपुर में 55 फीसदी खराब रहा। जबकि अगस्त, 2020 बीते वर्ष की तुलना में 13 से 47 फीसदी ज्यादा स्वच्छ रहा।  

पीएम 10 में पीएम 2.5 की हिस्सेदारी सामान्य तौर पर ज्यादा होती है और इस वर्ष यह 70 फीसदी तक पहुंची लेकिन यह दीवाली से एक सप्ताह पहले ही हुआ। इस वर्ष  दीवाली में जयपुर स्वच्छ रहा लेकिन जोधपुर काफी खराब रहा। 2019 में दीवाली के एक दिन बाद पीएम 2.5 का औसत स्तर जयपुर में 72 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था जबकि 2019 में 211 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रिकॉर्ड किया गया था। इस वर्ष 66 फीसदी की गिरावट रही। वहीं दोपहर और रात में पटाखों के कारण घंटे के हिसाब से चढ़ने वाले पीएम 2.5 के स्तर में भी 85 फीसदी कमी रही 

लेकिन जोधपुर में स्थिति बिल्कुल अलग रही। घंटे भर पर चढ़ने वाले पीएम 2.5 का स्तर इस वर्ष दीवाली में 379 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था जो कि 2019 में रिकॉर्ड 244 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से काफी अधिक था।  वहीं दीवाली के एक दिन बाद जोधपुर में पीएम 2.5 का औसत स्तर 149 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था जो कि 2019 में 123 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था। इस वर्ष 21 फीसदी की बढ़त हुई। यह दीवाली बीते वर्ष के मुकाबले इस वर्ष नवंबर में देरी से आई। जयपुर जो कि सर्दियों में बीते तीन वर्षों में सबसे खराब सप्ताह वाला रहा।  

जयपुर में इस सर्दियों में लंबी अवधि वाले गंभीर स्तर की खराब वायु गुणवत्ता में बढ़ोत्तरी हुई है। जयपुर के वायु प्रदूषण का स्तर दिल्ली-एनसीआर की प्रवृत्तियों की तरह है। सर्दियों में यह ज्यादा उथल-पुथल वाला भी है। छोटी सी अवधि में गंभीर स्तर पर पहुंचना औऱ फिर गिर जाना ऐसी प्रवृत्ति वाला वायु प्रदूषण जयपुर में भी दिखाई दे रहा है। यह मौसम में होने वाले परिवर्तन के कारण हो सकता है लेकिन इसकी अभी और तहकीकात बाकी है। वहीं, राजस्थान में रोजना प्रदूषण के उतार-चढाव का ग्राफ औसत बीते वर्ष की तरह रहा है।  

सीएसई ने राजस्थान के इन शहरों का वर्ष 2019-2020 के बीच आंकड़ों का सालाना औसत और 24 घंटे के उच्चतम स्तर का औसत आंकड़ों का तुलनात्मक विश्लेषण किया है। यह दर्शाता है कि पूर्वी राजस्थान के शहरों में सालाना स्तर पर पीएम 2.5 के स्तर में कमी है लेकिन सर्दियों में रोजाना के उच्चतम स्तर काफी ज्यादा है। यह स्थिति तब और बनती है जब शहरों में हवा लॉक हो जाती है। जबकि पश्चिमी और केंद्रीय राजस्थान में रोजाना प्रदूषण के स्तर के चढ़ाव में काफी कमी रही। 

जयपुर ने इस वर्ष फसल अवशेष के धुएं का स्मॉग झेल है। गंगा के मैदानी भागों में फसल अवशेष जलाए जाने के दौरान राजस्थान के शहरों में पीएम 2.5 स्तर में बढोत्तरी देखी गई है। इस वर्ष जयपुर और जोधपुर में भी स्मॉग हुआ। यह दिल्ली-एनसीआर के साथ-साथ ही चला। मसलन 9 नवंबर को दिल्ली में पीएम 2.5 का स्तर 520 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था जबकि जयपुर में 10 नवंबर को 211 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रिकॉर्ड किया गया। वहीं, जोधपुर में 11 नवंबर को 156 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रिकॉर्ड किया गया। इन नई उभरती हुई प्रवृत्तियों की पड़ताल अभी और की जानी है।  

सीएसई ने विश्लेषण में कहा है कि जयपुर का सालाना औसत पीएम 2.5 के स्तर को राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों के बराबर लाने के लिए 23 फीसदी कम करने की जरूरत है। जबकि जोधपुर में 54 फीसदी, भिवाड़ी को 64 फीसदी, पाली को 34 फीसदी तक कम करना होगा और हमेशा के लिए 16 फीसदी कम रखना होगा। यह आंकाक्षा कठोर कार्रवाई की मांग करती है। नई लैंसेट 2020 रिपोर्ट में भी वायु प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य पर पड़ने वाली लागत देश के लिए जीडीपी का 1.36 फीसदी है जबकि राजस्थान के लिए यह राष्ट्रीय स्तर से भी ज्यादा राज्य के जीडीपी का 1.70 फीसदी है। 

आईएचएमसी, आईसीएमआर और पीएचएफआई ने मिलकर इस रिपोर्ट में राज्य स्तरीय रुग्णता बोझ अनुमान में बताया है कि राजस्थान में  समयपूर्व मौतों के लिए वायु प्रदूषण दूसरा सबसे बड़ा कारण है। यदि वायु प्रदूषण को कम किया जाए तो राजस्थान में जीवन प्रत्यशा को 2.5 वर्ष बढ़ाया जा सकता है।  

इस मुद्दे पर विशेषज्ञों से बातचीत के लिए संपर्क करें : सुकन्या नायर, सीएसई मीडिया रिसोर्स सेंटर,  sukanya.nair@cseindia.org, 8816818864

 

 

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