DMF BROCHURE JHARKHAND (HINDI)

भारत के खनिज समृद्ध जिलों के साथ विडंबना यह है कि यहाँ भारत का सबसे गरीब तबका निवासरत है। देश का एक प्रमुख खनिज राज्य होने के बाद भी झारखण्ड पर गहरी आर्थिक और सामाजिक असमानता थोप दी गई है. भारत सरकार के नवीनतम गरीबी अनुमान के मुताबिक, झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में 41 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे निवास करते हैं, जो राष्ट्रीय औसत 26 प्रतिशत की तुलना में काफी अधिक है। इसके अलावा योजना आयोग ने राज्य के 19 जिलों की पहचान पिछड़े जिले के रूप में की है। इन क्षेत्रों में जनजातीय आबादी की स्थिति और भी बदतर है, क्यूंकि उनमें से लगभग 54 प्रतिशत गरीबी रेखा से नीचे निवास करते हैं।

भारतीय लोकतंत्र के लिए, यह असमानता अन्धकार का विषय बना हुआ है। वर्ष 2008 में, सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरॉन्मेंट ने ‘रिच लैंड, पूअर पीपुलः इज ससटेनेबल माइनिंग पॉसिबल?’ शीर्षक से एक नागरिक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें खनन प्रभावित क्षेत्रों में असमानता के बोझ के प्रति ध्यान आकर्षित करने के लिए एक नए सामाजिक और पर्यावरण संबंधी अनुबंध की सिफारिश की गई है। एक दशक तक विभिन्न प्लेटफार्मों के माध्यम से इसको लेकर चर्चाओं और वार्ताओं का दौर चला। अंत में’ वर्ष 2015 में खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम (एमएमडीआर) 1957, जो कि भारत का केंद्रीय खनन कानून है, में संशोधन किया गया और इसके तहत जिला खनिज फाउंडेशन (डीएमएफ) का गठन किया गया।

डीएमएफ के माध्यम से लोगों को पहली बार प्राकृतिक संसाधनों से समुचित लाभ हासिल करने की मान्यता मिली है। यह समृद्ध भूमि और उनके गरीब लोगों के बीच के अनुबंध को फिर से लिखने का एक निर्णायक अवसर है।

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