ग्रामीण भारत में विकेन्द्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा (DRE) प्रणालियां लोगों की आजीविका का साधन बन सकती हैं। ये आय सृजन के साथ-साथ सामुदायिक विकास को सक्षम बनाती हैं। झारखंड कीराज्य सौर नीति 2022में110 मेगावॉट मिनी और माइक्रो ग्रिड्स तथा 50 मेगावॉट सौर-आधारित आजीविका के प्रयोगों का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, जिसका उद्देश्य 1,000 मॉडल गांवों का सौरकरण करना है।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, सौर ऊर्जा के मिनी और माइक्रो ग्रिड्स पहले से ही 548 गांवों में स्थापित किए जा चुके हैं, जिससे लगभग 29,450 परिवार लाभान्वित हुए हैं, जिनकी कुल स्थापित क्षमता 10 मेगावॉट से अधिक है।
हालांकि,अभी भी कई चुनौतियांहैं। जैसे- इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी, लोगों की तकनीकी जानकारी की कमी, वित्त (फंड) की दिक्कतें और बिजली प्रणाली के रखरखाव की समस्याए। इन कारणों से नीति के लक्ष्य पूरी तरह सफल नहीं हो पा रहे हैं और ग्रामीणों की आजीविका में निरंतर सुधार नहीं हो पा रहा है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए कई उपायों की आवश्यकता है जैसे विकेन्द्रीकृत ग्रिड केइंफ्रास्ट्रक्चर को सुदृढ़ करना और सामुदायिक स्वामित्व को बढ़ावा देना।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (CSE), एमलिंडा फाउंडेशनके साथ मिलकर गुमला, झारखंड में एक जिला-स्तरीय कार्यशाला आयोजित कर रहा है ताकि इन मुद्दों पर चर्चा की जा सके। कार्यशाला का मुख्य फोकस होगा, डीआरई आधारित आजीविकाएं, ढांचात्मक चुनौतियां और मिनी-ग्रिड परियोजनाओं के माध्यम से आय बढ़ाने की रणनीतियां।
यह एक दिवसीय कार्यशाला होगी, जिसके बाद स्थल भ्रमण भी आयोजित किया जाएगा। इसमें ऊर्जा समिति के सदस्य, डीआरई उपभोक्ता, पंचायत प्रतिनिधि, सरकारी अधिकारी और स्वयं सहायता समूहों के सदस्य (संचालित और प्रस्तावित दोनों प्रकार के मिनी-ग्रिड क्षेत्रों से) भाग लेंगे।
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बिनीत दास
कार्यक्रम प्रबंधक, नवीकरणीय ऊर्जा इकाई
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट
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