सेप्टेज प्रबंधन

April 24, 2018

कार्यकारी सारांश

अधिकांश शहरी भारत मल के निपटान के लिए सेप्टिक टैंक और गड्ढों जैसी ऑन-साईट व्यवस्थाओं पर आश्रित है। ऐसी व्यवस्थाओं की संख्या में केवल वृद्धि ही हो रही है चूँकि जहां एक तरफ़ भारत खुले में शौच को खत्म करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, वहीँ कई ऑन-साईट व्यवस्थाओं के उचित निर्माण, संचालन और रखरखाव और सेप्टेज प्रबंधन पर काफी कम ध्यान दिया गया है। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के बावजूद, जिसके तहत कचरे का जल निकायों में निपटान करना निषिद्ध है, सेप्टेज का कहीं भी निपटान कर दिया जाता है। इससे हमारे जल स्रोत भूजल और सतही जल, दोनों प्रदूषित होते हैं, और स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ता है।
 
ऐसा माना जाता है कि पूरे शहर की स्वच्छता के लिए सेप्टेज प्रबंधन आवश्यक है, क्योंकि भारत में 70 प्रतिशत से अधिक शहरी जनसंख्या ऑन-साइट स्वच्छता व्यवस्थाओं (OSS) पर आश्रित है। परंपरागत व्यवस्थाऐं पानी और धन दोनों के हिसाब से काफी खर्चीली हैं। इसके हमारे पास पर्याप्त सबूत हैं।
 
सेप्टेज प्रबंधन की इस मार्गदर्शिका (गाइड) का उद्देश्य स्वच्छता क्षेत्र के साथ-साथ शहरी ड़िजाइन और नियोजन में शामिल प्रेक्टिशनर्स की मदद करना है। इसका प्रयोजन पूरी स्वच्छता श्रृंखला में सेप्टेज प्रबंधन में शामिल उपायों (कंटेनमेंट, खाली करना, परिवहन, शोधन और अंतिम- उपयोग या निपटान) का पता लगाना और यह निर्दर्शित करना है कि सेप्टेज प्रबंधन को शहरों में किस तरह लागू किया जा सकता है। 

 

 

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